कैसी है ये बावली ? Bhandarej Dausa Rajasthan journey weblog india



भांडारेज
बावड़ी या बावली उन सीढ़ीदार कुँओं , तालाबों या कुण्डो को कहते हैं जिन के जल तक सीढ़ियों के सहारे आसानी से पहुँचा जा सकता है। भारत में बावड़ियों के निर्माण और उपयोग का लम्बा इतिहास है। कन्नड़ में बावड़ियों को ‘कल्याणी’ या पुष्करणी, मराठी में ‘बारव’ तथा गुजराती में ‘वाव’ कहते हैं। संस्कृत के प्राचीन साहित्य में इसके कई नाम हैं, एक नाम है-वापी। इनका एक प्राचीन नाम ‘दीर्घा’ भी था- जो बाद में ‘गैलरी’ के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा। वापिका, कर्कन्धु, शकन्धु आदि भी इसी के संस्कृत नाम हैं।

ये भी कहते है सत्य है:- एक रात में तैयार हुई थी ये तीनो बावड़ी। :- भांडारेज की बावड़ी ( दौसा)राज. जी हाँ दौसा की चाँद बावड़ी की तरह ये बावड़ी भी कहते है कि एक रात में ही बनी थी। इतना ही नहीं ये भी कहते है कि चाँद बावड़ी , आलूदा की बावड़ी और भांडारेज की बावड़ी तीनो को ही एक रात में बनाया गया और ये तीनो सुरंग से एक-दूसरे से जुड़ी हैं।

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